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Writer's pictureRohan Raj

राजनीतिक दांवपेंच का ब्यौरा है अनंत विजय लिखित 'अमेठी संग्राम' 



लेखक - अंनत विजय

प्रकाशक - एका पब्लिकेशन


अगर आपसे कोई एक सवाल पूछे कि बीते दो सालों में राजनीति पर लिखी गई किस किताब को आप सबसे बेहतर मानते हैं? तब साल 2020 में अनंत विजय द्वारा लिखी गई किताब "अमेठी संग्राम" का ज़िक्र आश्चर्यचकित नहीं करेगा ।


अब आप बिलाशक कह सकते हैं कि ऐसा क्यों?

इस क्यों के उत्तर से पहले आपको जानना चाहिए कैसे ? 

इसके लिए इस किताब की ढेरों विवेचना लिखी जा सकती है   तो सबसे पहले जानते हैं आखिर किताब में ऐसा क्या है जिसने इसे 2020 की चर्चित किताब बना दिया ।


किताब में है फिलवक्त केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और कांग्रेस नेता राहुल गाँधी के साल 2014 और 2019 के अमेठी लोकसभा चुनाव के शोध के साथ लिखे गए ब्योरे , दो खालिश चुनावी टक्करें ,  राजनितिक दांवपेच और भी बहुत कुछ । 


" साल 2014, लोकसभा चुनाव, नरेन्द्र मोदी वर्सेज राहुल गाँधी । लेकिन राहुल गाँधी को दो जगह से मोर्चा लेना था ।एक तो नरेन्द्र मोदी से और दूसरा उनकी अपनी सीट अमेठी में स्मृति से ।चुनाव अभियान  ज़ोरों पर था । तब स्मृति के साथ अमेठी चुनाव में काम कर रहीं आशा लकड़ा ने बताया- हम लोग पांडे का पुरवा गाँव में प्रचार के लिए पहुंचे । वहां महिलाओं से बातें कर रहे थे , अचानक मेरी नज़र पास के नीम के पेड़ के नीचें बैठी महिलाओं पर गई । मैंने पूछा कि 'वे महिलाएं इतनी दूर क्यूँ  बैठी हैं? वहां मौजूद लोगों ने कहा कि- वे आदिवासी महिलाएं हैं इसलिए उनको दूर बैठाया गया है। जब हमने उन्हें अपने पास बुलाया तो वे बोलीं- हम कभी किसी नेता के इतने पास नहीं आये क्योंकि नेता लोगों ने कभी हमसे बात करने की जहमत ही नहीं उठाई ।" 

~ किताब से 


ये इस किताब का एक मात्र ब्यौरा नहीं है, ऐसे अनेकों ब्योरों से भरी है ये किताब जो बताती है कि राजनीति आज़ादी के 75 साल बाद भी लोगों तक अपना हाथ नहीं पहुंचा पाई है । इस किताब में साल 2014 में स्मृति ईरानी को मिली हार की भी विस्तृत कहानी है जो कि इस किताब को व्यक्तिपूजा की श्रेणी से बचा ले जाती है । हालाँकि इस किताब में आपको साहित्यिक भाषा नहीं मिलेगी लेकिन तमाम साहित्यकारों के उद्धरण और कविताएँ इस किताब को बेहतर बनाती हैं । राजनीति जीत के लिए किस हद तक जा सकती है, वोट के लिए और वोट मिलने के बाद नेताओं के व्यवहार को कई प्रत्यक्ष उदाहरणों  से समझाया गया है और इस किताब की सबसे खास बात यह है कि इसमें एक महिला को चुनाव में मिलने वाली चुनौतियों और समाज में उसके प्रति सोच को उजागर किया गया है । यह भारतीय राजनीति में औरतों की भागीरदारी पर एक प्रश्न चिन्ह भी उठाता है । एक को तुच्छ दिखाकर दुसरे को बड़ा बनाने का प्रयास इस किताब में कहीं नज़र नहीं आता । नायक स्मृति के प्रति लेखक की उदारता भी कहीं नहीं दिखती । हालांकि स्मृति के शुरुआती राजनीति के किस्सों और ब्योरों को इस किताब में न रखना एक खामी भी है जो राजनीति के नए पाठकों के लिए ठीक नहीं होगा। अगर थोड़ी बहुत खामियों को नज़रअंदाज़ कर दें तो इस किताब को तथ्यपूर्ण सामाजिक सत्य कहने में हमें कोई गुरेज नहीं होना चाहिए। 


'एका प्रकाशन' से छपी अमेठी संग्राम एक नायाब तोहफा है, उन लोगों के लिए जो भारतीय चुनावों  को बारीकी से इतिहास के सन्दर्भों के साथ समझना चाहते हैं । पढ़ी जाने लायक किताब ।


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