'दि इंपोर्टेंस ऑफ बीइंग अर्नेस्ट' ऑस्कर वाइल्ड का लिखा अंतिम नाटक था जो 1894 के अंत में लिखा गया था । इसका पहला प्रदर्शन सेंट जेम्स थियेटर लंदन में 14 फरवरी 1895 को वैलेंटाइन डे पर किया गया । अपने चुटिले संवादों और प्रतिलोम परिहास (Inverse Humour) के कारण यह नाटक एक मास्टरपीस है । 'मायने गंभीर होने के' इसका हिंदी अनुवाद है जिसे सौरभ श्रीवास्तव ने किया है । यह महज हिंदी अनुवाद ही नहीं है बल्कि भारतीय रूपांतरण भी है। क्योंकि हिंदी रूपातंरण में पात्रों के नाम , समय व स्थान भारतीय परिप्रेक्ष्य में लिए गये हैं । इसीलिए इसका अनुवाद हिंदी पाठकों के लिए अधिक प्रासंगिक है ।
इसका हिंदी अनुवाद इतना प्रभावशाली है कि आप पढ़ते समय यह अनुमान नहीं लगा पाएंगे कि यह एक अनुदित / रूपांतरित कृति है । लेखक ने इस नाटक के हास्य को उसी तरह पाठकों के समक्ष रखा है जैसे मूल नाटक में है । एक कालजयी मास्टरपीस को हिंदी पाठकों व दर्शकों तक पहुंचाने का यह एक सफल प्रयास है ।
हिंदी रूपांतरण जयपुर के गंधर्व थियेटर में मंचित भी हो चुका है और बोधि प्रकाशन ने इसे किताब के तौर पर प्रकाशित किया है । ऑस्कर वाइल्ड के मूल नाटक में विक्टोरियन युग के उच्च वर्ग की गिरती नैतिकता पर कटाक्ष किया है । वहीं हिंदी रूपांतरण में लेखक ने इसे 1950 के बाद का भारत दिखाया है जब देश आजाद तो हो चुका था पर, राजे - रजवाड़े पूरी तरह समाप्त नहीं हुए थे । बिना काम काज किए ऐश्वर्य व वैभव की ज़िन्दगी बिताने वाले जंमीदारों व अंग्रेजी स्वरूप को आजादी के बाद के भारतीय जंमीदारों में दिखाया है । हिंदी रुपांतरण का स्थान है उत्तर प्रदेश का अवध, आज का लखनऊ व समय है 1950 । नाटक में कुछेक प्रसंग ऐसे है जहाँ पाठक हंसे बिना नहीं रह पाएंगे और यह प्रसंग उच्च वर्ग की बौद्धिक क्षमता पर व्यंग्य भी करती है । नाटक तीन भागों में है और बेहद दिलचस्प । इसकी कहानी दो धनी जागीरदार युवकों पर केंद्रित है ।
एक है अनुराग और एक है राजू यानि राजेंद्र प्रताप । राजेंद्र प्रताप अनाथ है जिसे लखनऊ के निकट एक गांव के एक जागीरदार प्रचंड प्रताप सिंह ने गोद लिया था और अपनी पोती चार्मी का गार्जियन बना दिया। राजू को यह काम नहीं पसंद है क्योंकि यह निहायत संजीदगी और नैतिक दायित्व का काम है। इससे भागने के लिए वह एक झूठी कहानी बनाता है कि उसका एक छोटा भाई गंभीर सिंह है जो लखनऊ में रहता है और बिगड़ैल किस्म का है। भाई से मिलने के बहाने वह लखनऊ अपने मित्र अनुराग के पास आता है जो मौज मस्ती का शौकीन एक जंमीदार है और बरकाकाना के रानी साहिबा का रिश्तेदार भी।
इन्हीं मुलाकातों के दौरान राजेंद्र रानी साहिबा की पुत्री नंदा से प्रेम कर बैठता है पर अपने छद्म पहचान गंभीर सिंह के साथ। वहीं अनुराग भी राजू के छोटे भाई का किरदार लेकर चार्मी से मिलता है। राजसी परिवारों की दोनों युवतियां नंदा व चार्मी इन्हें गंभीर सिंह के नाम से जानती हैं । बदली हुई पहचान और कई चुटिले प्रसंगों के साथ यह नाटक दिलचस्प होता जाता है । हास्य के नाम पर आजकल परोसे जा रहे अश्लीलता के बीच यह मास्टर पीस पढ़ी जानी चाहिए जो हिन्दी पाठकों के लिए भी उपलब्ध है ।
मायने गंभीर होने के : 'दि इंपोर्टेंस ऑफ बीइंग अर्नेस्ट' का हिन्दी अनुवाद
लेखक - ऑस्कर वाइल्ड
अनुवादक - सौरभ श्रीवास्तव
प्रकाशक - बोधि प्रकाशन
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