राजनीति बलि मांगती है और यह बलि किसी भी चीज की हो सकती है । इन्सान की , सपनों की , रिश्तों की , भरोसे की ...बिना बलि के राजनीति पूरी नहीं होती ।
- किताब से
नवीन चौधरी का यह उपन्यास सामयिक राजनीति का घटना चक्र है । कहानी शतरंज की बिसात है और पात्र मोहरे । सबका अपना स्वार्थ और अपनी चाल । राजनीतिक महत्वकांक्षाएं कैसे मानवीय संवेदनाओं को समाप्त कर सकती हैं इसका रोचक चित्रण है 'ढाई चाल' । राजनीति अपने स्वार्थ के लिए किसी भी हद को पार सकती है । बलात्कार जैसे संवेदनशील मुद्दे का राजनीतिकरण , एक आम प्रेम प्रसंग का लव ज़िहाद हो जाना , निजी संबंधों को भी राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करना , यह सब आपको इस उपन्यास में मिल जाएगा ।
मेरा मानना है राजनीति में कोई पूरा सही या गलत नहीं होता । बस कम गलत और अधिक सही होता है । यह निर्भर करता है किसका पलड़ा भारी है । अपने वर्चस्व को स्थापित करने में हर पात्र लगा है । चाहे राघवेंद्र हो, अचला हो, मानव हो , शाहिद हो, माधवी हो या नारायण नांबियार । परंतु इन सबके बीच कहानी का सबसे सराहनीय पात्र है मयूर जो इन तमाम षड्यंत्रों के बीच पाठकों को एक हिम्मत देता है ।
लेखक ने तमाम ऐसे उद्धरण दिए हैं जो प्रासंगिक भी है और कटु सत्य भी। किताब के एक पन्ने पर नारायण नांबियार कहते हैं " जनता को न्याय नहीं उत्तेजना चाहिए । उनको अपने भीतर चल रहे तमाम विचारों और अंतर्द्वन्द्वों का गुबार चाहिए ।"
वहीं एक जगह श्याम जोशी, राघवेंद्र से कहते हैं "जनता का साथ सिर्फ़ इतना चाहिए कि वो जीतने लायक वोट देती रहे ' क्या इस लोकतंत्र में जनता की इतनी ही भागीरदारी है ?
यह हमारे लोकतंत्र का सबसे दुखद प्रश्न है । सामयिक राजनीति पर लेखक की पकड़ इसे मन्नू भंडारी के महाभोज के समकक्ष रखती है जिसमें एक दलित युवक की हत्या को राजनीति अपने अवसरवाद की तरह देखती है ।
तारीखों और पात्रो में कहीं कहीं उलझन तो होती है पर फिर भी कथानक आपको बांधे रखता है क्योंकि यहां हर चाल पर एक चाल है । आज की राजनीतिक परिदृश्य पर आप कुछ ऐसा पढ़ना चाहते हैं जो रोचक भी हो और विचारणीय भी तो यह किताब पढ़ सकते हैं ।
सामयिक राजनीति का घटनाचक्र है 'ढाई चाल '
लेखक - नवीन चौधरी
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन
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