लेखक - प्रचंड प्रवीर
प्रकाशक - सेतु प्रकाशन
अक्सर हमारे साथ ऐसा होता है कि हम प्रतिदिन तमाम लोगों से मिलते हैं । कुछ तो हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा होते हैं तो कुछ अजनबी जिनसे हम संयोग वश टकरा जाते हैं । इन्हीं मुलाकातों और घटनाओं को प्रचंड प्रवीर ने कहानियों में ढाल दिया । ये कहानियां ठीक पिछले दिन की घटनाओं का वर्णन हैं जो मनोरंजक होने के साथ साथ विचारपरक भी हैं । लेखक ने कल की बात इस श्रृंखला को हिन्दुस्तानी संगीत के सात स्वरों के आधार पर विभाजित किया है । इस श्रृंखला में पहला संग्रह था षडज और तीसरा है गांधार । ऋषभ इस श्रृंखला की दूसरी कड़ी है और लेखक ने शुरुआत में एक श्लोक में यह वर्णित भी किया है कि स्वरों के बीच ऋषभ शोभा पाता है।
कल की बात ऋषभ की कहनियां 2013 से 2016 तक की चौंतीस घटनाएं हैं जो इस दौरान लेखक के साथ घटित होती हैं या यूं कहें कि ये कहानियां इस समयावधि की आपबीती हैं। एक पाठक के तौर पर यह महसूस होता है कि ये कहानियां कभी कटाक्ष करती हैं , कभी उदास करती हैं , कभी हंसाती हैं तो कभी विचारों की तह टटोलने की कोशिश करती हैं - इन कहानियों की खासियत है विविधता, जो आकर्षित करती है ।
'भाई की सादी' जिस परिवेश पर लिखी गयी है , उसके अनुसार प्रयुक्त आंचलिक भाषा पाठक को जोड़ती है । बिहार के ग्रामीण अंचलों में जहाँ श को स उच्चारित किया जाता है , लेखक ने वैसे ही शब्दों को ही प्रयोग कर उसकी प्रमाणिकता बरकरार रखी है । लिटिल मरमेड और बैंग बैंग इन पात्रों का ज़िक्र इस किताब में बहुत बार आया है और हर प्रसंग में उनकी जिज्ञासा पाठक को भी सोचने पर विवश करती है।
वो हंस पड़े तो कई दर्द टाल देता है , मनुष्यता पर विश्वास करने की सीख दे जाता है । कहानी के पात्र सव्यसाची के शब्दों में " हमें इंसान पर भरोसा करना चाहिए ", वर्तमान के सामयिक घटनाओं के लिए प्रासंगिक हो उठता है । 'किस्म किस्म के साहित्य' एक कटाक्ष की तरह चुभता है । वहीं श्मशान के समीप यह पूरी घटना हमारे समक्ष कई प्रश्न रखता है। कंकालों के माध्यम से जीवन के सत्य से अवगत कराता है ।
जब हम स्त्री कंकाल के संदर्भ में महादेवी वर्मा की कविता पढ़ते हैं -
"मेरी लघुता पर आती
जिस दिव्य लोक की व्रीड़ा
उसके प्राणों से पूछो
वे पाल सकेंगे पीड़ा ?"
तो पूरा प्रसंग सारगर्भित हो उठता है ।
लेखक की भाषा सहज है परंतु लेखन में विचारों की गहराई है । इसका सबसे अच्छा उदाहरण है - द लेडी फ्राम शंघाई की पंक्तियाँ -
"वैसे हर आदमी किसी न किसी के लिए बहुत बेवक़ूफ़ होता है । इन मुसीबतों से निकलने का एक ही तरीका है , उम्रदराज़ होना ।"
भाषा में आंचलिकता प्रसंगों को जीवित कर देती है । लंबी कहानियों और उपन्यासों के इतर कुछ विचारपरक कहानियां ढूंढ रहे हैं तो -" कल की बातः ऋषभ " एक बेहतर विकल्प है ।
Kal Ki Baat : Rishabh https://www.amazon.in/dp/9391277543/ref=cm_sw_r_apan_i_PX0Q8AG8SY9XK76YRSWN
लेखक की दैनंदिनी से निकली विचारपरक कहानियां - कल की बात : ऋषभ
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