गजानन माधव मुक्तिबोध की इस किताब “एक साहित्यिक की डायरी” को 13 अध्यायों/शीर्षकों में समाहित किया गया है। इसे प्रकाशित किया है भारतीय ज्ञानपीठ ने।
डायरी का नाम सुनकर पाठक के मन में यह विचार उत्पन्न होना लाजिमी है कि इसमें घटनाएं तथा कथानक तिथिवार लिखी गई होंगी। जैसा की डायरी लिखने का यह एक सामान्य और सबसे अधिक प्रचलित प्रारूप भी है। परंतु, मुक्तिबोध ने इस लीक से हटकर और अपने स्वभाव में इसे बिना किसी तिथि के लिखा है। मुक्तिबोध ने अध्याय “तीसरा क्षण” से आरम्भ कर के अंतिम अध्याय “कलाकार की व्यक्तिगत ईमानदारी : दो” पर विराम देते हुए कुल तेरह अध्यायों के माध्यम से अपनी बातों को समेटा है।
“एक साहित्यिक की डायरी” की शिल्पगत और वैचारिक विशेषता पाठकों को खूब आकर्षित करती है। इसे पढ़ते समय कई दफे हमें निबंधात्मक डायरी का स्वाद भी मिलेगा। संवाद के दृष्टिकोण से यह डायरी बेहद सरल और सुगम है। कारण है- बहुत अधक पात्रों का नहीं होना। कहीं एकालाप, कहीं काल्पनिक पात्र से वार्तालाप, तो कहीं ‘केशव’ जैसे मित्र से भी वार्तालाप संवादों को रोचकता प्रदान करता है। कथानक कहते और लिखते समय मुक्तिबोध की शैली बेहद गंभीर और चयनात्मक हैं। जिससे कथानक की गूढता और प्रभावी होती है। पाठकों की उत्सुकता को बनाए रखते हुए कुछेक विमर्शों की सूची संक्षिप्तवार निम्नलिखित है- ‘सरकारी कर्मचारी से वार्तालाप के दौरान उनकी कार्य संस्कृति पर विचार’, ‘कविता के तत्वों पर विमर्श’, विश्लेषक-विश्लेषण पर चर्चा’, ‘साहित्य को लेकर राजनीति के प्रति समझ और उत्तरदायित्व’, ‘वर्ग-संघर्ष और लेखक की मनोदुविधा’ इत्यादि।
श्रीकांत वर्मा अपनी टिप्पणी में लिखते हैं- वस्तुतः जैसा कि श्री ‘अदीब’ ने लिखा है, मुक्तिबोध की डायरी उस सत्य की खोज है जिसके आलोक में कवि अपने अनुभव को सार्वभौमिक अर्थ दे देता है ।
निष्कर्षतः यह किताब आपको एक नई दृष्टि देगी। आप इसे बेशक पढ़ें।
एक साहित्यिक की डायरी~मुक्तिबोध
लेखक - मुक्तिबोध
प्रकाशक - स्पेस पब्लिकेशन (2017 संस्करण)
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